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नज़्म
जो ब-ज़ाहिर बुत-शिकन हैं और ब-बातिन बुत-तराश
ख़ूबी-ए-तक़दीर से वो मेहरबाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
छोड़ दे लिल्लाह अब ये पीर-बाज़ी छोड़ दे
बुत-शिकन फ़ितरत है तेरी इन बुतों को तोड़ दे
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
कोई गहरी बात थी जी में जिसे वो कह भी न सकती थी
ऐसी चुप और पागल आँखें दमक रही थीं शिद्दत से
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
बिना शक्कर लगता था मीठा ठंडा ठंडा पानी
था कितना मासूम सा बचपन बात न हम ने जानी
काैसर जहाँ काैसर
नज़्म
तेरी चुटकी की सदा है या कि शैताँ का ख़रोश
रहम कर इंसानियत पर ओ बुत-ए-इस्मत-फ़रोश