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नज़्म
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ारज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है जिन्हें सब से ज़ियादा दावा-ए-हुब्बुलवतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
साज़-ए-आहंग-ए-जुनूँ तार-ए-रग-ए-जाँ के लिए
बे-ख़ुदी शौक़ की बे-सर-ओ-सामाँ के लिए
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मैं समझ भी लूँ अगर इस को मोहब्बत का जुनूँ
तुझ को इस इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ से निस्बत क्या है
हिमायत अली शाएर
नज़्म
फिर दिल में दर्द सिलसिला-ए-जुम्बा है क्या करूँ
फिर अश्क गर्म-ए-दावत-ए-मिज़्गाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बुलंद दा'वा-ए-जम्हूरियत के पर्दे में
फ़रोग़-ए-मजलिस-ओ-ज़िन्दाँ हैं ताज़ियाने हैं