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नज़्म
दम-ए-कोहसार में ढूँडा तो न निकला कुछ भी
बर्फ़ पर छिड़की हुई ख़ून की ख़ुशबू के सिवा
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
कहीं कोई नज़र आता नहीं किस से कहे 'शाहिद'
ख़ुदारा हालत-ए-दर्द-ए-निहानी देखते जाओ
फ़ज़ल हक़ अज़ीमाबादी
नज़्म
ये आँखें हर दर-ओ-दीवार में आँखें
ये आँखें रेस्तुरानों में ऐवानों में क्लबों में
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
अभी इंसानियत दौलत से टक्कर ले नहीं सकती
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हम कि हैं कब से दर-ए-उम्मीद के दरयूज़ा-गर
ये घड़ी गुज़री तो फिर दस्त-ए-तलब फैलाएँगे