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नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
गिला करता रहा तू कातिब-ए-तक़दीर से नाहक़
मिला है जो तुझे कितनों को मिलता है ज़माने में
सदा अम्बालवी
नज़्म
दस्त-ए-शफ़क़त कटा और हवा में मुअल्लक़ हुआ
आँख झपकी तो पलकों पे ठहरी हुई ख़्वाहिशें धूल में अट गईं
एजाज़ रिज़वी
नज़्म
नग़्मा-ए-पुर-कैफ़ लब पर दस्त-ए-नाज़ुक साज़ पर
मुतरिबा क़ुर्बान हो जाऊँ मैं इस अंदाज़ पर
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
किसी के दस्त-ए-इनायत ने कुंज-ए-ज़िंदाँ में
किया है आज अजब दिल-नवाज़ बंद-ओ-बस्त