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नज़्म
ग़म को ख़ुद आकर बहा जाएगी मौज-ए-सुरूर
देखता क्या है उठ और फ़िक्र-ए-मय-ओ-पैमाना कर
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
दौर-ए-'अफ़लातून'-ओ-'तुलसी-दास' से 'इक़बाल' तक
हिस्ट्री कल शाइ'रों की इस कमेटी ने पढ़ी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
मिटा देता है दम में नख़वत-ए-नमरूद इक मच्छर
कभी ऐसा भी दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
रंगीनी-ए-बहार थी जिस दिल में जल्वा-रेज़
अब उस में दौर-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है तिरे बग़ैर
शैदा अम्बालवी
नज़्म
मिटा देता है दम में नख़वत-ए-नमरूद इक मच्छर
कभी ऐसा भी दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
वो चाँदनी की हसीं वादियों में रक़्साँ हैं
वो दौर-ए-पैकर-ए-रूमाँ जुनूँ-ब-दामाँ हैं
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
मैं ने इक दिन ख़्वाब में देखा कि इक मुझ सा फ़क़ीर
गर्दिश-ए-पैमाना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा का असीर