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नज़्म
ख़ुदा-ए-सुख़न 'मीर' के सोज़-ए-पिन्हाँ की मैं राज़दाँ हूँ
वो दीवान-ए-ग़ालिब वो शहकार-ए-तख़लीक़-ए-आदम
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
ये तजरीदी ख़ाकों की तस्वीर-गह है
मिरा मुँह चिड़ाने को दीवार-ओ-दर पर कई मस्ख़ पैकर टँगे हैं