aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कितने अल्फ़ाज़ हैंजो मिरी उँगलियों के हर इक पोर में
दीवार में रौज़न तो हुआ करते हैं लेकिनदिल में नहीं होता कोई इस दौर में रौज़न
मैं बच गई माँमैं बच गई माँ
हर भेद को छुपाएँ ये हाथ की लकीरेंपूछो तो सब बताएँ ये हाथ की लकीरें
कभी ख़ुदा से मिल करइंसान से मिलना
सब कुछ है अपने देस में रोटी नहीं तो क्यावा'दा लपेट लो जो लंगोटी नहीं तो क्या
पती के साथ मेंबनवास में रहना मुक़द्दर है मिरा
आओ उस याद को सीने से लगा कर सो जाएँआओ सोचें कि बस इक हम ही नहीं तीरा-नसीब
मिरे घर की देवी के बाला-ए-सीनाखिला है मोहब्बत का ताज़ा कँवल
सड़कों पे सन्नाटा है औरजिन उम्रों में
शहज़ादा लिपटता है मुझ से और दूर कहींचिड़िया को साँप निगलता है
ये जो कहा जाता है भाईइश्क़ भी तोला जाता है
पागल लड़कीदीवारों को गालियाँ देती है
झिलमिलों की आड़ में रक़्साँदर्द की आँधी
मुझे नवम्बर की धूप की तरह मत चाहोकि इस में डूबो तो तमाज़त में नहा जाओ
हिन्दू मुस्लिम भेद मिटासब से अपनी यारी रख
तो मुझ को हम-नशीं अपना लड़कपन याद आता हैकभी ख़ाली क्लासों में जो बच्चे ग़ुल मचाते हैं
क्या अब रात ऐसे हीगुज़र जाएगी
तू आफ़ाक़ से क़तरा क़तरा गिरती हैसन्नाटे के ज़ीने से
जब आग जली नाफ़ के नीचे तो ज़मीं फैल गईआग जली और बदन फैल गए
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