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सोने से पहले एक ख़याल

किश्वर नाहीद

सोने से पहले एक ख़याल

किश्वर नाहीद

MORE BYकिश्वर नाहीद

    मुझे नवम्बर की धूप की तरह मत चाहो

    कि इस में डूबो तो तमाज़त में नहा जाओ

    और इस से अलग हो तो

    ठंडक को पोर पोर में उतरता देखो

    मुझे सावन के बादल की तरह चाहो

    कि उस का साया बहुत गहरा

    नस नस में प्यास बुझाने वाला

    मगर उस का वजूद पल में हवा

    पल में पानी का ढेर

    मुझे शाम की शफ़क़ की तरह मत चाहो

    कि आसमान के क़ुर्मुज़ी रंगों की तरह

    मेरे गाल सुर्ख़

    मगर लम्हा-भर बाद

    हिज्र में नहा कर, रात सी मैली मैली

    मुझे चलती हवा की तरह मत चाहो

    कि जिस के क़याम से दम घुटता है

    और जिस की तेज़-रवी क़दम उखेड़ देती है

    मुझे ठहरे पानी की तरह मत चाहो

    कि मैं इस में कँवल बन के नहीं रह सकती हूँ

    मुझे बस इतना चाहो

    कि मुझ में चाहे जाने की ख़्वाहिश जाग उठे!

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    किश्वर नाहीद

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    सोने से पहले एक ख़याल किश्वर नाहीद

    अज़रा नक़वी

    सोने से पहले एक ख़याल अज़रा नक़वी

    स्रोत :
    • पुस्तक : kulliyat dusht-e-qais main laila (पृष्ठ 972)

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