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नज़्म
मुबारक हो कि फिर से हो गया ''डांस'' और ''डिनर'' चालू
ख़लास अहल-ए-नज़र होंगे हुआ दर्द-ए-जिगर चालू
मजीद लाहौरी
नज़्म
रात दिन सर पर मुसल्लत लंच असराने डिनर
और हुकूमत ख़र्च अगर दे दे तो हज का भी सफ़र
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
है रक़म हर एक तोहफ़े पर कोई मानूस नाम
रात होगी और डिनर के बा'द मेरे पास सब आ जाएँगे
शहज़ाद अहमद
नज़्म
ये लोग ज़िंदा-दिल हैं बहादुर हैं शेर हैं
जो फ़ेल हो के होते हैं ख़ुश वो दिलेर हैं