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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिस ने इस का नाम रखा था जहान-ए-काफ़-अो-नूँ
मैं ने दिखलाया फ़रंगी को मुलूकियत का ख़्वाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
राहज़न हँसने लगे छुप के कमीं-गाहों में
हम-नशीं ये था फ़रंगी की फ़िरासत का तिलिस्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
कुछ न कुछ साथ फ़रंगी के फ़ुसूँ-साज़ भी हैं
और हम जैसे बहुत ज़मज़मा-पर्दाज़ भी हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फ़रंगी शराबें तो अन्क़ा थीं
लेकिन मय-ए-नाब-ए-क़ज़वीन ओ ख़ुल्लार-ए-शीराज़ के दौर-ए-पैहम से
नून मीम राशिद
नज़्म
वो हसीं और दूर-उफ़्तादा फ़रंगी औरतें
तू ने जिन के हुस्न-ए-रोज़-अफ़्ज़ूँ की ज़ीनत के लिए
नून मीम राशिद
नज़्म
मामा जी का रॉकेट है मामा जी जो फ़रमाएँगे
हम तुम से वा'दा करते हैं दीदी को ले जाएँगे