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नज़्म
अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे
मगर मैं अपने कमरे में बहुत अफ़्सुर्दा बैठा था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
कह नहीं सकता कहाँ से आए हो, तुम कौन हो
ऐसा लगता है कि ये सूरत है पहचानी हुई
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मैं कि ख़ुद अपनी ही आवाज़ के शो'लों का असीर
मैं कि ख़ुद अपनी ही ज़ंजीर का ज़िंदानी हूँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जा रहा है अपनी मंज़िल की तरफ़ माह-ए-तमाम
जैसे क़ब्रों के मुजाविर जैसे मस्जिद के इमाम