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नज़्म
इल्तवा में डाल दे फ़िलहाल शादी का ग़ुबार
इस से बेहतर है कि कर ले मुर्ग़ियों का कारोबार
असद जाफ़री
नज़्म
कार-ए-तख़लीक़-ए-बहाराँ में हैं शो'ले फ़िलहाल
सावन आता है बस अब जेठ की हिद्दत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
मिरे सीने में कब सोज़िंदा-तर दाग़ों के हैं थाले
मगर दोज़ख़ पिघल जाए जो मेरे साँस अपना ले
जौन एलिया
नज़्म
ग़ुबार-आलूदा-ए-रंग-ओ-नसब हैं बाल-ओ-पर तेरे
तू ऐ मुर्ग़-ए-हरम उड़ने से पहले पर-फ़िशाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चमकती आँखों में शोख़ जज़्बे गुलाब चेहरे पे मुस्कुराहट
कि जैसे चाँदी पिघल रही हो