अजीब आदमी था वो
रोचक तथ्य
Dedicated to his father-in-law Kaifi Azmi
अजीब आदमी था वो
मोहब्बतों का गीत था
बग़ावतों का राग था
कभी वो सिर्फ़ फूल था
कभी वो सिर्फ़ आग था
अजीब आदमी था वो
वो मुफ़लिसों से कहता था
कि दिन बदल भी सकते हैं
वो जाबिरों से कहता था
तुम्हारे सर पे सोने के जो ताज हैं
कभी पिघल भी सकते हैं
वो बंदिशों से कहता था
मैं तुम को तोड़ सकता हूँ
सहूलतों से कहता था
मैं तुम को छोड़ सकता हूँ
हवाओं से वो कहता था
मैं तुम को मोड़ सकता हूँ
वो ख़्वाब से ये कहता था
कि तुझ को सच करूँगा मैं
वो आरज़ूओं से कहता था
मैं तेरा हम-सफ़र हूँ
तेरे साथ ही चलूँगा मैं
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंज़िलें
कभी नहीं थकूँगा मैं
वो ज़िंदगी से कहता था
कि तुझ को मैं सजाऊँगा
तू मुझ से चाँद माँग ले
मैं चाँद ले के आऊँगा
वो आदमी से कहता था
कि आदमी से प्यार कर
उजड़ रही है ये ज़मीं
कुछ इस का अब सिंघार कर
अजीब आदमी था वो
वो ज़िंदगी के सारे ग़म
तमाम दुख
हर इक सितम से कहता था
मैं तुम से जीत जाऊँगा
कि तुम को तो मिटा ही देगा
एक रोज़ आदमी
भुला ही देगा ये जहाँ
मिरी अलग है दास्ताँ
वो आँखें जिन में ख़्वाब हैं
वो दिल है जिन में आरज़ू
वो बाज़ू जिन में है सकत
वो होंट जिन पे लफ़्ज़ हैं
रहूँगा उन के दरमियाँ
कि जब मैं बीत जाऊँगा
अजीब आदमी था वो
- पुस्तक : LAVA (पृष्ठ 115)
- रचनाकार : Javed Akhtar
- प्रकाशन : Rajkamal Parakashan Pvt. Ltd (2012)
- संस्करण : 2012
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