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नज़्म
गर्द-ओ-ग़ुबार याँ का ख़िलअत है अपने तन को
मर कर भी चाहते हैं ख़ाक-ए-वतन कफ़न को
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
इल्म-ओ-फ़न के मोतियों पे जम गया गर्द-ओ-ग़ुबार
ख़ाक के ज़र्रात में मल्बूस दुरदाने हैं हम
तालिब चकवाली
नज़्म
कि चूहों की इमदाद करते हुए नूर की बस्तियों में वो दाख़िल हुए
जो उड़ाते थे गर्द ओ ग़ुबार अपने सर पर
अली अकबर नातिक़
नज़्म
उफ़ुक़ गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-राह बन कर डूब जाते हैं
वो देखो पौ फटी अँधियारे जादों के शिगाफ़ों से
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
उफ़ुक़ गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-राह बन कर डूब जाते हैं
वो देखो पो फटी अँधियारे जादों के शिगाफ़ों से
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
पाक दामन पे नहीं उस के ज़रा गर्द-ओ-ग़ुबार
चोर-बाज़ार में फिरती है ब-सद-इज़्ज़-ओ-वक़ार