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नज़्म
रात ने जब घड़ियों से वक़्त उठा लिया
घंटी की तेज़ आवाज़ ने सारे पर्दों का रंग उड़ा दिया
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
अगर इस गुलशन-ए-हस्ती में होना ही मुक़द्दर था
तो मैं ग़ुंचों की मुट्ठी में दिल-ए-बुलबुल हुआ होता
जमील मज़हरी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ