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नज़्म
यूँही देखूँ जो राखी को तो ये रंगीन डोरा है
जो देखूँ ग़ौर से इस को तो है ज़ंजीर लोहे की
फौज़िया मुग़ल
नज़्म
ज़रा देखो तो मुझ को ग़ौर से शायद वो मैं ही था
बहुत दिन में मिले हैं हम तो आओ आज जी भर कर
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
सुनो ये ग़ौर से माएँ बिलक रही हैं कहीं
ये देखो बच्चों की आँखें छलक रही हैं कहीं
शिफ़ा कजगावन्वी
नज़्म
वहीं ख़ुश हो गया करते ही वो हाथों पे निगाह
ग़ौर से हम ने जो इस बात को देखा वल्लाह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जो सवाल इमपोरटेंट आता है हर इक बाब में
ग़ौर से देखा है उस को दिन-दहाड़े ख़्वाब में