aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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खेल खिलौने पहले क्या थेनाम सुनो तुम बच्चो कुछ के
कभी ख़ुदा से मिल करइंसान से मिलना
शाम में ग़ार थाग़ार में रात थी
मासी दही बिलोनाख़ाली नाँद की बासी ख़ुशबू
सदाओं का समुंदरमेरे जिस्म में
इक बिसात-ए-वुजूद-ओ-बदन के तहतसालहा-साल तक
तुम एक मुजस्समाजो फ़नकार की उँगलियों में
कुछ नहीं, घर में मिरे कुछ भी नहींकोई कपड़ा कि हरारत को बदन में रखता
क़सम उस बदन कीऔर क़सम उस बदन पर खिले फूलों की
ज़ईफ़ी की शिकन-आलूद चादर से बदन ढाँपेवो अपनी नौजवाँ पोती के साथ
जहाँ-ज़ाद कैसे हज़ारों बरस बादइक शहर-ए-मदफ़ून की हर गली में
काम जो रिश्वत से बन जाए बनाना चाहिएचोर-बाज़ारी में काला धन कमाना चाहिए
सुकूत खुलने लगा हैतन्हाई चहचहाती है बाम-ओ-दर पर
हम किस दुख से अपने मकान फ़रोख़्त करते हैंऔर भूक के लिए च्यूँटी-भर आटा ख़रीदते हैं
छटी बारवो दजला-ओ-फ़ुरात के दरमियान
आ लगी है रेत दीवारों के साथसारे दरवाज़ों के साथ
ख़ामोश रात उस की मुंतज़िर थीवो एक मर्तबा फिर से
जब आदमी के हाल पे आती है मुफ़्लिसीकिस किस तरह से उस को सताती है मुफ़्लिसी
बाजा कभी न थमने वालाशेवन सूखी फलियों का
1बिछी हुई है बिसात कब से
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