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नज़्म
दिन-भर कॉफ़ी-हाउस में बैठे कुछ दुबले-पतले नक़्क़ाद
बहस यही करते रहते हैं सुस्त अदब की है रफ़्तार
हबीब जालिब
नज़्म
अभी कुछ दिन लगेंगे ख़्वाब को ताबीर होने में
किसी के दिल में अपने नाम की शम्अ जलाने में
असग़र नदीम सय्यद
नज़्म
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इस कुम्बा-परवर दुनिया में बेकस की हिमायत कौन करे
जब ग़ासिब मुंसिफ़ बन जाएँ इंसाफ़ की ज़हमत कौन करे