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नज़्म
मिरी बिगड़ी हुई तक़दीर को रोती है गोयाई
मैं हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब शर्मिंदा-ए-गोश-ए-समाअत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब भी ख़िज़ाँ का राज है लेकिन कहीं कहीं
गोशे रह-ए-चमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो सुन लेता है गोश-ए-दिल से अफ़्साना कनहैया का
वो हो जाता है सच्चे दिल से दीवाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है