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नज़्म
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी
ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अमजद नजमी
नज़्म
वो मौसम है कि ख़ूबान-ए-चमन बनते-सँवरते हैं
ये आलम है कि जैसे रंग तस्वीरों में भरते हैं
नज़्म तबातबाई
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है