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नज़्म
अक़्ल की मंज़िल है वो इश्क़ का हासिल है वो
हल्क़ा-ए-आफ़ाक़ में गर्मी-ए-महफ़िल है वो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये तिरी आँखों की बे-ज़ारी ये लहजे की थकन
कितने अंदेशों की हामिल हैं ये दिल की धड़कनें
अहमद फ़राज़
नज़्म
ये दरिंदे ये शराफ़त के पुराने दुश्मन
तुम कि हो हामिल-ए-आदाब-ओ-रिवायात-ए-कुहन
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हमारा बाहमी रिश्ता जो हासिल-तर था रिश्तों का
हमारा तौर-ए-बे-ज़ारी भी कितना वालिहाना है
जौन एलिया
नज़्म
इस इश्क़ पे हम भी हँसते थे बे-हासिल सा बे-हासिल था
इक ज़ोर बिफरते सागर में ना कश्ती थी ना साहिल था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मेरी उम्मीदों का हासिल मिरी काविश का सिला
एक बे-नाम अज़िय्यत के सिवा कुछ भी नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इमारत किया शिकवा-ए-ख़ुसरवी भी हो तो क्या हासिल
न ज़ोर-ए-हैदरी तुझ में न इस्तिग़ना-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल-ए-मजरूह को मजरूह-तर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था