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नज़्म
मिरी ज़ात के मदार में इक नाम का रक़्स जारी है
स्याह गुलाब के जज़्बात की अक्कासी
उमैननुज़ ज़हरा सय्यद
नज़्म
बद्र वास्ती
नज़्म
अपनी औलाद की ख़ातिर मैं जवाँ हूँ अब भी
जिस के क़दमों में है जन्नत वही माँ हूँ अब भी
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
क़दम घर में रखा तो एक मुहतरमा नज़र आई
अफ़ीमी समझा वो सूरत मिरी बेगम की जैसी है
अब्दुल क़ादिर आरिफ़
नज़्म
और जिस के पँख की उड़ान गाँव की हद तक थी
तब खेतों में ज़हर नहीं बोया जाता था