सुनो
मेरी मोहब्बत कोई मौत नहीं
जिस का ज़ाइक़ा चखना तुम पर लाज़िम हो
मेरी मोहब्बत तो आशिक़ों के शमशान घाट पर
उगा वो साया-दार पेड़ है
जिस की डालों पर अजनबी परिंदे अपना घर बनाते हैं
और जिस की जड़ों में मेरे हम-नफ़स
अपनी वहशतों की झुलसती राख डालते हैं
तुम जो मेरे हम-ज़ाद हो
तुम्हारे लिए तो मेरी मोहब्बत ज़िंदगी है
जिस में मानिंद-ए-गुलज़ार तख़्लीक़ का हर पहलू
तुम्हारा इंतिज़ारी रहता है
तुम जो मेरे हम-रक़्स हो
तुम क्यों अपने महवर से दस्त-बरदार होते हो
कि तुम्हारे ऐसा करने से
मेरे निज़ाम-ए-शख़्सी का तवाज़ुन बिगड़ने लगता है
और बिगड़ते ज़ावियों से जो मंज़र
मेरी आँखें देखती हैं
उस में इस्राफ़ील अपने नरसिंघे की सम्त दुरुस्त करता है
और इज़राईल एक अज़्म-ए-अज़ीम से अपने पर तोलने लगता है
बे-शक कुल्लु नफ़्सिन ज़ाइक़त-उल-मउत
कुल्लु नफ़्सिन ज़ाइक़त-उल-मउत
मगर मेरी मोहब्बत कोई मौत नहीं
जिस का ज़ाइक़ा चखना तुम पर लाज़िम हो
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