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नज़्म
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
अब नाज़ुक नाज़ुक ज़ेहनों पर फ़ौलादी हमला होगा
शीशों के पैकर पिघलेंगे पथरीली तन्हाई में