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नज़्म
हीर की ताज़ा क़ब्र पे झुका हुआ बैठा है
उल्टी साँसें भरता राँझा ख़ाक से जाने क्या कुछ पूछ रहा है
आकाश 'अर्श'
नज़्म
जहाँ रंगत ही रंगत है जहाँ निकहत ही निकहत है
मोहब्बत हुक्मराँ है जिन के पाकीज़ा दयारों में!
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुकम्मल हुस्न कोई ढूँडने घर से चला 'राँझा'
हसीनों की परी इक 'हीर' से टकरा गया 'राँझा'
सरदार पंछी
नज़्म
तुम अगर हो, तो मिरे पास हो या दूर हो तुम
हर घड़ी साया-गर-ए-ख़ातिर-ए-रंजूर हो तुम