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नज़्म
आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जावेदाँ मेरी न मर्ग-ए-ना-गहाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अज़िय्यतों से नजात है ये हयात है ये
शराब-ओ-शब और शाइ'री ने बड़ा सहारा दिया है मुझ को
तारिक़ क़मर
नज़्म
हिकायात-ए-शीरीन-ओ-तल्ख़ उन की, उन के दरख़्शाँ जराएम
जो सफ़्हात-ए-तारीख़ पर कारनामे हैं, उन के अवामिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जाने कैसी कैसी हिकायत देख उसे याद आती थी
पहली दफ़अ' जब साथ थे बैठे क्लास के अंदर हम दोनों
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
जिन को ममनूआ ज़मीनों की हिकायात कहा जाता है
तीरगी पर जिसे लिक्खी हुई वो रात कहा जाता है
बुशरा एजाज़
नज़्म
चराग़-ए-दैर-ओ-हरम से किसी का घर न जले
न कोई फिर से हिकायात-ए-रफ़्तगाँ लिक्खे