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नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
आश्कारा है ये अपनी क़ुव्वत-ए-तस्ख़ीर से
गरचे इक मिट्टी के पैकर में निहाँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहती है बच्चे को मेरा चाँद कहते प्यार से
इस्तिआ'रा प्यार में इक माँ के बन जाता है चाँद
अबरार किरतपुरी
नज़्म
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
गुम सी हो जाती हैं नज़रें तो ख़याल आता है
इस में पिन्हाँ तिरी आँखों का इशारा तो नहीं