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नज़्म
परवीन शाकिर
नज़्म
हम-संग जवाहिर कभी पत्थर नहीं होता
हर चंद तराशे कोई सन्ना-ए-सफ़ा-कोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
यहाँ तो कहकशाँ मुट्ठी में है
लाल-ओ-जवाहर पैरहन पर हैं शुआओं के कई धब्बे हर इक उजले बदन पर हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
हो वहाँ क़द्र-ए-जवाहिर का किसे फ़िक्र-ओ-ख़याल
संग-रेज़ों का जहाँ नाम गुहर है ऐ दोस्त
अनवर साबरी
नज़्म
चुने मैं ने मौजों से मोती जवाहिर से ज्योति बहारों से राग
लिए मैं ने ख़ोशों से ख़ुशबू के तोशे
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
जो शहर की जगमगाती सड़कों पे
मौज-दर-मौज बेश-क़ीमत जवाहिर-ओ-पैरहन की इस दाइमी नुमाइश को
हसन अकबर कमाल
नज़्म
मैं पल दो पल का शा'इर हूँ पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जैसे मुफ़्लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं उस आलिम-तरीन-ए-दहर की फ़िक्रत का मुनकिर था
मैं फ़सताई था जाहिल था और मंतिक़ का माहिर था