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नज़्म
किस को समझाएँ उसे खोदें तो फिर पाएँगे क्या
हम अगर रिश्वत नहीं लेंगे तो फिर खाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मामा जी के रॉकेट पर हम चाँद की सैर को जाएँगे
वहाँ के बच्चों से मिल-जुल कर दूध मलाई खाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी रंजिशों ने साँस दी बेचैनियों ने नींद
हमें ख़ुश-नुमा माहौल और सुकून काट खाएँगे
दर्शिका वसानी
नज़्म
शबनम कमाली
नज़्म
कब तक आँखें मूँद के बैठें कब तक धोका खाएँगे
कब तक देश लुटेगा यूँही कब हम होश में आएँगे
सदा अम्बालवी
नज़्म
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो 'रूही' की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं