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नज़्म
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक बर्क़-ए-अदा ख़िर्मन-ए-हस्ती पे गिरा कर
नज़रों को मिरी तूर का अफ़्साना बना दे
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तेरी तानों में है ज़ालिम किस क़यामत का असर
बिजलियाँ सी गिर रही हैं ख़िर्मन-ए-इदराक पर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जादा-पैमा के लिए ख़िज़्र हो तुम ये रहज़न
तुम हो ख़िर्मन के निगहबान ये बर्क़-ए-ख़िर्मन
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़िर्मन-ए-जौर जला दे वो शरारा हूँ मैं
मेरी फ़रियाद पे अहल-ए-दुवल अंगुश्त-ब-गोश
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
मैं शायद अब नहीं हूँ वो मगर अब भी वही हूँ मैं
ग़ज़ब हंगामा-परवर ख़ीरा-सरा अब भी वही हूँ मैं