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नज़्म
कह रही है मेरी ख़ामोशी ही अफ़्साना मिरा
कुंज-ए-ख़ल्वत ख़ाना-ए-क़ुदरत है काशाना मिरा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी के दस्त-ए-इनायत ने कुंज-ए-ज़िंदाँ में
किया है आज अजब दिल-नवाज़ बंद-ओ-बस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इक कूंज को सखियाँ छोड़ गईं आकाश की नीली राहों में
वो याद में तन्हा रोती थी, लिपटाए अपनी बाहोँ में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हम मोहब्बत के के ख़राबों के मकीं
कुंज-ए-माज़ी में हैं बाराँ-ज़दा ताइर की तरह आसूदा
नून मीम राशिद
नज़्म
अब्बास ताबिश
नज़्म
कुछ ऐसे आ गए हैं तंग हम कुंज-ए-असीरी से
कि अब इस से तो बेहतर गोशा-ए-तुर्बत समझते हैं