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नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
त'अल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझे इस शाम है अपने लबों पर इक सुख़न लाना
'अली' दरवेश था तुम उस को अपना जद्द न बतलाना
जौन एलिया
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हुज़ूर होंट इस तरह से कपकपा रहे हैं क्यूँ
हुज़ूर आप हर क़दम पे लड़-खड़ा रहे हैं क्यूँ
अहमद फ़राज़
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उन को पलंग पे बैठे झड़ियों का ख़त उड़ाना
है जिन को अपने घर में याँ लोन तेल लाना