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नज़्म
जिसे हम मुर्दा समझे ज़िंदा तर पाइंदा तर निकला
मह ओ ख़ुर्शीद से ज़र्रे का दिल ताबिंदा तर निकला
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
कौन समझे कि ये अंदेशा-ए-फ़र्दा की फ़ुसूँ-कारी है
माह ओ ख़ुर्शीद ने फेंके हैं कई जाल इधर
अख़्तर पयामी
नज़्म
तारीक दिखाई देती है दुनिया ये मह-ओ-ख़ुर्शीद उसे
रोज़ी का सहारा हो जिस दिन वो रोज़ है रोज़-ए-ईद उसे
नुशूर वाहिदी
नज़्म
नूर-ए-ख़ुर्शीद का जाँ-सोज़ जहाँ-ताब जमाल
आसमानों पे सितारों का सुबुक-काम ख़िराम
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
रिफ़अत सरोश
नज़्म
ये मैं कि मुझ से छिन गया है सर-बसर
वो कौन है कि जिस की दस्तरस में आ के मैं मिरा नहीं रहा
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
ख़लाओं के अंधे मुसाफ़िर से पूछें
वो इक ज़र्रा-ए-ख़ाक से टूट कर दूर ला-इंतिहा वुसअतों और