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नज़्म
तुझ से खेली हैं वो महबूब हवाएँ जिन में
उस के मल्बूस की अफ़्सुर्दा महक बाक़ी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरे पैराहन-ए-रंगीं की जुनूँ-ख़ेज़ महक
ख़्वाब बन बन के मिरे ज़ेहन में लहराती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
तितली का नाज़-ए-रक़्स ग़ज़ाला का हुस्न-ए-रम
मोती की आब गुल की महक माह-ए-नौ का ख़म