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नज़्म
मोहब्बत अपनी यक-तौरी में दुश्मन है मोहब्बत की
सुख़न माल-ए-मोहब्बत की दुकान-आराई करता है
जौन एलिया
नज़्म
देखा तो एक दर में है बैठी वो ख़स्ता-हाल
सकता सा हो गया है ये है शिद्दत-ए-मलाल
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
ज़बाँ-बुरीदा हूँ ज़ख़्म-ए-गुलू से हर्फ़ करो
शिकस्ता-पा हूँ मलाल-ए-सफ़र की बात सुनो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मलाल ऐसा भी क्या जो ज़ेहन को हर ख़्वाब से महरूम कर दे
जमाल-ए-बाग़-ए-आइंदा के हर इम्कान को मादूम कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़