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नज़्म
आ भी जा, ताकि मिरे सज्दों का अरमाँ निकले
आ भी जा, कि तिरे क़दमों पे मिरी जाँ निकले
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे
मगर मैं अपने कमरे में बहुत अफ़्सुर्दा बैठा था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
यूँ गुमाँ होता है बाज़ू हैं मिरे साथ करोड़
और आफ़ाक़ की हद तक मिरे तन की हद है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
छाई है जो अब तक धरती पर उस रात से लड़ते आए हैं
दुनिया से अभी तक मिट न सका पर राज इजारा-दारी का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
आ गया दिल में तिरे 'मीर-तक़ी-मीर' का सोज़
दे गया दर्द की लज़्ज़त तुझे 'दिल-गीर' का सोज़
हबीब जौनपुरी
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
किस में जुरअत है कि इस राज़ की तशहीर करे
सब के लब पर मिरी हैबत का फ़ुसूँ तारी है