आग के पास
पीर-ए-वामाँदा कोई
कोट पे मेहनत की सियाही के निशाँ
नौजवाँ बेटे की गर्दन की चमक देखता हूँ
इक रक़ाबत की सियह लहर बहुत तेज़
मिरे सीना-ए-सोज़ाँ से गुज़र जाती है
जिस तरह ताक़ पे रक्खे हुए गुल-दाँ की
मस-ओ-सीम के कासों की चमक
और गुलू उलझे हुए तारों से भर जाता है
कोएले आग में जलते हुए
किन यादों की किस रात में
जल जाते हैं
क्या इन्ही कानों की यादों में जहाँ
सालहा-साल ये आसूदा रहे
उन्ही बे-आब दरख़्तों के वो जंगल
जिन्हें पीराना-सरी बार हुई जाती थी
कोएले लाखों बरस दौर के ख़्वाबों में उलझ जाते हैं
आज शब भी वो बड़ी देर से
घर लौटा है
उस के अल्फ़ाज़ को
इन रंगों से आवाज़ों से क्या रब्त
जो इस ग़म-ज़दा घर के ख़स-ओ-ख़ाशाक में हैं
उस को इस मेज़ पर बिखरी हुई
ख़ुशबुओं के जंगल से ग़रज़
आज भी अपने अक़ीदे पे ब-दस्तूर
ब-ज़िद क़ाएम है
वो दरख़्तों के तनोमंद तने
अपने आइंदा के ख़्वाबों में असीर
गर्द-बाद आ ही गए
उन की रिहाई का वसीला बन कर
ख़ुद से महजूरी-ए-नागाह का हीला बन कर
आए और चल भी दिए
तूल-ए-अलमनाक की दहलीज़ पे
रुख़्सत कह कर
और वो लाखों बरस सोच में
आइंदा के मौहूम में ख़्वाबीदा रहे
मेरे बेटे तुझे कुछ याद भी है
मैं ने भी शोर मचाया था कभी
ख़ाक के बिगड़े हुए चेहरे के ख़िलाफ़
लहन बे-रंग हुआ सुन के
मिरी जाँ भी पुकार उठी थी
मैं कभी एक अना और कभी दो का सहारा लेता
अपनी साथी से मैं कह उठता कि जागो ऐ जान
हराना तीरा-बयाबाँ में
भटकते हुए पत्तों का हुजूम
मेरा डर मुझ को निगल जाएगा
मेरे कानों में मिरे कर्ब की आवाज़
पलट आती थी
तुझे बे-कार ख़ुदाओं पे यक़ीं
अब भी नहीं
अब भी नहीं
आज भी अपने ही इल्हाद की कुर्सी में
पड़ा ऊँघता हूँ
नौजवाँ बेटे के अल्फ़ाज़ पे चौंक उठता हूँ
तू ने बेटे
ये अजब ख़्वाब सुनाया है मुझे
अपना ये ख़्वाब किसी और से हरगिज़ न कहो
कभी आहिस्ता से दरवाज़ा जो खुलता है तो हँस देता हूँ
ये भी इस बात की सरसर की
नई चाल नया धोका है
फूल या परियाँ बनाने का कोई नुस्ख़ा
मिरे पास नहीं है बेटे
मुझे फ़र्दाओं के सहरा से भी
अफ़्सून-ए-रिवायत की लहक आती है
आग में कोएले बुझने की तमन्ना न करो
इन से आइंदा के मिटते हुए आसार
उभर आएँगे
इन गुज़रते हुए लम्हात की तन्हाई में
कैसा ये ख़्वाब सुनाया है मुझे तू ने अभी
नहीं हर एक से
हर एक से ये ख़्वाब कहो
इस से जाग उठता है
सोया हुआ मज्ज़ूब
मिरी आग के पास
ऐसे मज्ज़ूब को इक ख़्वाब बहुत
ख़्वाब बहुत ख़्वाब बहुत
ऐसे हर मस्त को
इक ख़्वाब बहुत
- पुस्तक : Kulliat-e-Rashid (पृष्ठ 408)
- रचनाकार : Noon Meem Rashid
- प्रकाशन : Kitabi Duniya, Delhi-6 (2011)
- संस्करण : 2011
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