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नज़्म
मगर ये अनोखी निदा जिस पे गहरी थकन छा रही है
ये हर इक सदा को मिटाने की धमकी दिए जा रही है
मीराजी
नज़्म
करोड़ों बच्चों के मिटने का इक अलमिय्या है
चुराए जाते हैं बच्चे अभी घरों से यहाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
क्यूँ न उन दोनों पे मिटने की हो हसरत अख़्तर
उफ़ वो उस रात की बात आह वो उस बात की रात
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुल्क मिटने को है पैग़ाम-ए-बक़ा दे दो उसे
मुतमइन बैठे हो दिल सीने में घबराता नहीं
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
आज फिर इस मुल्क के लाखों जवाँ बेदार हैं
हुर्रियत की राह में मिटने को जो तय्यार हैं
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
मगर वो लोग जो मिटने से पहले माँद पड़ जाएँ
वो जिन की गुफ़्तुगू भी एक सरगोशी सी बन जाए