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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरा नन्हा सा क़ासिद जो तिरे ख़त ले कर आता था
न था मालूम उसे किस तरह के पैग़ाम लाता था
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मुहरा मार लिया
मौत को शह दे कर तुम ने समझा था अब तो मात हुई
गुलज़ार
नज़्म
मोहब्बत के बुलंद-ओ-बाग दा'वे सब ही करते हैं
मोहब्बत की असली मेराज को कब कोई समझा है
अफ़रोज़ रिज़वी
नज़्म
समझना चाहिए मजबूरियाँ अहल-ए-चमन को सब्ज़ बेलों की
नुमू मुहताज है जिन की हमेशा इक सहारे की