वबा के दिनों का सफ़र-नामा
1
शहर ख़ाली करवा लिया जाता है
और वबा के दिनों में मोहब्बत
ममनू’ क़रार पाती है
किराया-नामों से
कई शहरों के नाम ग़ाएब हो
जाते हैं
और
साहिली आँखें
डाक के इंतिज़ार में
बूढ़ी होने लगती हैं
मार्च की सदा-बहार सह-पहरों में
वक़्त
कभी कभी
झुरझुरी ले कर उठता है
और फिर ऊँघने लग जाता है
ट्रेन एक सुनसान स्टेशन पर रोक ली जाती है
2
यहाँ
मौत
कड़वे बादामों की
महक बन कर फैल रही है
सर्द आँखें बे-रंग चेहरे
उस की दहशत से
पथराने लगे हैं
पुराने दरख़्तों
की दराड़ों में
साँप बसे हैं
साल-ख़ूर्दा हवेली
किसी क़दीम पेशीन-गोई के
ख़ौफ़ में डूबी है
और
चाँदनी बाग़ को
झड़ते पत्तों की
चादर ने ढाँप लिया है
3
सुनो
अगर बोसों पे ‘आएद पाबंदी
ख़त्म होने से पहले
मैं लौट कर न आ सका तो
तो ये ख़त
मेरी आख़िरी निशानी समझ कर
महफ़ूज़ कर लेना
4
रंज-भरी दोपहर
गुलाबी शामों की याद में
तुलूअ' होती है
और साए लम्बे हो कर
आँखों तक आ जाते हैं
क़स्बा उदास है
कि इस बार
नौरोज़ का तेहवार
मनाया नहीं जा सका
गुल-ए-दो-पहरी के फूल
गमलों में मुरझा गए हैं
घरों की खिड़कियों पर
जस्ती चादरें चढ़ी हैं
कमरे में नीम-तारीक मोहब्बत की
यादगारें धुँदला रही हैं
और फ़ोटो फ्रे़म्ज़ पे जमी गर्द
सियाह होने लगी है
5
सब्ज़ लहरें
जज़ीरे का किनारा काटती हैं
तो सुर्ख़ बारिश
खपरैल की छतों पर नाचने लगती है
मैं ये नज़्म
पुरानी रम की बोतल में डाल कर
समुंदर के हवाले कर रहा हूँ
अगर आख़िरी सूरज
ग़ुरूब होने से पहले
ये तुम्हें मौसूल हो जाए
तो मेरी तस्वीर के साथ
वाले फरेम में लगा देना
6
मेरी सारी ज़मीन
गिरवी रख ली गई
और
पूरा आसमान
सर से छीन लिया गया
वो वबा के इब्तिदाई दिन थे
जब तुम
मेरे क़रीब आईं
और वबा ख़त्म होने से पहले
रुख़्सत हो गईं
तुम्हारे जाने पर
सारा क़स्बा
उदासी से भर गया
लेकिन
मैं अपनी आँखों में
दो बूँद आँसू भी
इकट्ठे न कर सका
इक झुलसती शाम में
मुझे खुर्चे हुए
सियाह लफ़्ज़ों का वसिय्यत-नामा
उन्हों ने थमाया
जिन्हों ने
किसी रौशन तेहवार पर
मुझे याद नहीं किया था
7
मैं यहाँ
उखड़ती साँसों में पैवंद
लगाते थक चुका हूँ
पुश्तैनी सियाह चादर
मेरे शाने उधेड़ रही है
एक दिन मैं
इसी चादर में लिपटा
इस ज़मीन में सो जाऊँगा
जहाँ
मुझे जानने वाला
कोई नहीं है
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