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नज़्म
ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं
वो हसन जिस का तसव्वुर बशर का काम नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुमुक़ की अबक़रिय्यत और सफ़ाहत के तफ़क्कुर ने
हमें तज़ई-ए-मोहलत के लिए अकवान बख़्शे हैं
जौन एलिया
नज़्म
सबात-ए-ज़िंदगी ईमान-ए-मोहकम से है दुनिया में
कि अल्मानी से भी पाएँदा-तर निकला है तूरानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से दिन की धूप दबे
इस शहर में क्या क्या गोरी है महताब-रुख़े गुलनार-लबे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बा'द