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नज़्म
तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए-महताब से रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी ज़र्द दोपहर
दीवारों को चाट रहा है तन्हाई का ज़हर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम न आए थे तो हर इक चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्द-ए-नज़र राहगुज़र राहगुज़र शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नहीं है यूँ तो नहीं है कि अब नहीं पैदा
कसी के हुस्न में शमशीर-ए-आफ़्ताब का हुस्न
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आसमाँ की गोद में दम तोड़ता है तिफ़्ल-ए-अब्र
जम रहा है अब्र के होंटों पे ख़ूँ-आलूद कफ़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त