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नज़्म
इसी के बीच में है एक पेड़ पीपल का
सुना है मैं ने बुज़ुर्गों से ये कि उम्र उस की
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मैं ने इक पेड़ पे जो नाम लिखा था अपना
कुछ दिनों ज़ख़्म के मानिंद वो ताज़ा होगा