ऐ दिल-ए-बे-ख़बर
ऐ दिल-ए-बे-ख़बर
जो हवा जा चुकी अब नहीं आएगी
जो शजर टूट जाता है फलता नहीं
वापसी मौसमों का मुक़द्दर तो है
जो समाँ बीत जाए पलटता नहीं
जाने वाले नहीं लौटते उम्र भर
अब किसे ढूँढता है सर-ए-रहगुज़र
ऐ दिल-ए-कम-नज़र ऐ मिरे बे-ख़बर ऐ मिरे हम-सफ़र
वो तो ख़ुशबू था अगले नगर जा चुका
चाँदनी था हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-क़मर
ख़्वाब था आँख खुलते ही ओझल हुआ
पेड़ था रुत बदलते हुआ बे-समर
ऐ दिल-ए-बे-असर ऐ मिरे चारा-गर
ये है किस को ख़बर!
कब हवा-ए-सफ़र का इशारा मिले!
कब खुलें साहिलों पर सफ़ीनों के पर
कौन जाने कहाँ मंज़िल-ए-मौज है!
किस जज़ीरे पे है शाह-ज़ादी का घर ऐ मिरे चारा-गर
ऐ दिल-ए-बे-ख़बर कम-नज़र मो'तबर
तू कि मुद्दत से है ज़ेर-ए-बार-ए-सफ़र
बे-क़रार-ए-सफ़र
रेल की बे-हुनर पटरियों की तरह
आस के बे-समर मौसमों की तरह
बे-जहत मंज़िलों की मसाफ़त में है
रस्ता भूले हुए रहरवों की तरह
चोब-ए-नार-ए-सफ़र
ए'तिबार-ए-नज़र किस गुमाँ पर करें
ऐ दिल-ए-बे-बसर
ये तो साहिल पे भी देखती है भँवर
रेत में किश्त करती है आब-ए-बक़ा
खोलती है हवाओं में बाब-ए-असर
तुझ को रखती है ये जे़ब-ए-दार-ए-सफ़र बे-क़रार-ए-सफ़र
ऐ दिल-ए-बे-हुनर
गर्म साँसों की वो ख़ुशबुएँ भूल जा
वो चहकती हुई धड़कनें भूल जा
भूल जा नर्म होंटों की शादाबियाँ
हर्फ़-ए-इक़रार की लज़्ज़तें भूल जा
भूल जा वो हवा भूल जा वो नगर
कौन जाने कहाँ रौशनी खो गई
लुट गया है कहाँ कारवान-ए-सहर
अब कहाँ गेसुओं के वो साए कहाँ
उस की आहट से चमके हुए बाम-ओ-दर ऐ दिल-ए-बे-बसर
रंग-ए-आसूदगी के तमाशे कहाँ
झुटपुटा है यहाँ रहगुज़र रहगुज़र
वो तो ख़ुशबू था अगले नगर जा चुका
अब किसे ढूँढता है अरे बे-ख़बर
जाने वाले नहीं लौटते उम्र भर
ऐ दिल-ए-कम-नज़र ऐ मिरे चारा-गर ऐ मिरे हम-सफ़र
- पुस्तक : Barzakh (पृष्ठ 71)
- रचनाकार : Amjad Islam Amjad
- प्रकाशन : Mawara Publishers, Bahawalpur Road Lahore (1986)
- संस्करण : 1986
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