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नज़्म
ज़र्रे ज़र्रे में तिरे ख़्वाबीदा हैं शम्स ओ क़मर
यूँ तो पोशीदा हैं तेरी ख़ाक में लाखों गुहर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
क़मर अपने लिबास-ए-नौ में बेगाना सा लगता था
न था वाक़िफ़ अभी गर्दिश के आईन-ए-मुसल्लम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कुछ लचके शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन भड़के
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
है इम्तिहाँ सर पर खड़ा मेहनत करो मेहनत करो
बाँधो कमर बैठे हो क्या मेहनत करो मेहनत करो
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर