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नज़्म
फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई
नीम-शब की ख़ामुशी में ज़ेर-ए-लब गाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
भरी हुई रेल में चढ़ो तो तुम अपनी हुर्मत सँभाल रखना
नए ज़मानों का है तक़ाज़ा पराए होंटों पे गाल रखना
खालिद इरफ़ान
नज़्म
रेल के अंदर बैठ के कैसे शरमाए घबराए थे
बग़ैर टिकट के पहुँच के घर पर कितनी मौज मनाई थी