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नज़्म
वक़्त की बात है हर ग़ुंचा-ए-सर-बस्ता मगर
वक़्त क्या चीज़ है पैमाना-ए-बे-साख़्ता है
महबूब ख़िज़ां
नज़्म
आओगे तो अपनी आवाज़ों के साए भी ले जाना
सारे ख़्वाब और परछाईं तुम्हारी साल-गिरह का तोहफ़ा हैं
शाइस्ता हबीब
नज़्म
ज़माने ने नहीं देखा कोई ख़ुद्दार शाइ'र सा
ग़रज़ कोई नहीं एहसान-ना-बर्दार शाइ'र सा