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नज़्म
जिस के परवानों में मुफ़्लिस भी हैं ज़रदार भी हैं
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख़्वाबों की क़सम
शकील बदायूनी
नज़्म
अब इस पे शाएर-ए-शीरीं-नवा को है ये गुमाँ
कि मेरे शोले से रौशन हुई है शम्अ-ए-बयाँ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं