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नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बुझ गया रौशन सवेरा माँ तिरे जाने के बा'द
छा गया हर सू अंधेरा माँ तिरे जाने के बा'द
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
वो इस वादी की शहज़ादी थी और शाहाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सिगरेट ने ये इक पान के बीड़े से कहा
तू हमेशा से परी-रूयों के झुरमुट में रहा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
क़हत उस पर क़त्ल-ओ-ग़ारत का ये आलम हाए हाए
हर तरफ़ है नाला-ओ-फ़रियाद-ओ-मातम हाए हाए
सरीर काबिरी
नज़्म
मनाज़िर सब उसी इक रौशनी पर मुनहसिर हैं
जो दिल की मुंहमिक परतों को जब भी फाँद कर आती है