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नज़्म
न काम आए मौजों के मोती जवाहिर की ज्योति न ख़ुशबू न राग
मुक़द्दर में पैहम नुजूम-ए-शब-ए-ग़म
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
हमारे मुक़द्दर का इंसान मंज़िल-ब-मंज़िल
सितारों से गुज़रा है, बज़्म-ए-नुजूम-ओ-क़मर जगमगा कर
जीलानी कामरान
नज़्म
हर एक बूँद में आफ़ाक़ गुनगुनाते हैं
ये शर्क़ ओ ग़र्ब शुमाल ओ जुनूब पस्त ओ बुलंद
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
नग़्मा-आरा वादियों में हैं नुजूम-ओ-मेहर-ओ-माह
हुस्न की छाई हुई बरनाइयाँ देहली में हैं